पुरानी पेंट रफू करा कर पहनते जाते है,
Branded नई shirt
देने पे आँखे दिखाते है
टूटे चश्मे से ही अख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते
है, Topaz के
ब्लेड से दाढ़ी बनाते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है ….
कपड़े का पुराना थैला लिये दूर
की मंडी तक जाते है,
बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते है
आटा नही खरीदते, गेहूँ पिसवाते है..
पिताजी आज भी पैसे बचाते है…
स्टेशन से घर पैदल ही आते है रिक्सा लेने से
कतराते है
सेहत का हवाला देते जाते है बढती महंगाई
पे
चिंता जताते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है ....
पूरी गर्मी पंखे में बिताते है, सर्दियां आने
पर रजाई में
दुबक जाते है
AC/Heater को सेहत का दुश्मन बताते है,
लाइट
खुली छूटने पे नाराज हो जाते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है
माँ के हाथ के खाने में रमते जाते है, बाहर
खाने में
आनाकानी मचाते है
साफ़-सफाई का हवाला देते जाते
है,मिर्च, मसाले और
तेल से घबराते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है…
गुजरे कल के किस्से सुनाते है, कैसे ये सब
जोड़ा गर्व से
बताते है पुराने दिनों की याद दिलाते
है,बचत की अहमियत
समझाते है
हमारी हर मांग आज भी,फ़ौरन पूरी करते
जाते है
पिताजी हमारे लिए ही पैसे बचाते है ...
देने पे आँखे दिखाते है
टूटे चश्मे से ही अख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते
है, Topaz के
ब्लेड से दाढ़ी बनाते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है ….
कपड़े का पुराना थैला लिये दूर
की मंडी तक जाते है,
बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते है
आटा नही खरीदते, गेहूँ पिसवाते है..
पिताजी आज भी पैसे बचाते है…
स्टेशन से घर पैदल ही आते है रिक्सा लेने से
कतराते है
सेहत का हवाला देते जाते है बढती महंगाई
पे
चिंता जताते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है ....
पूरी गर्मी पंखे में बिताते है, सर्दियां आने
पर रजाई में
दुबक जाते है
AC/Heater को सेहत का दुश्मन बताते है,
लाइट
खुली छूटने पे नाराज हो जाते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है
माँ के हाथ के खाने में रमते जाते है, बाहर
खाने में
आनाकानी मचाते है
साफ़-सफाई का हवाला देते जाते
है,मिर्च, मसाले और
तेल से घबराते है
पिताजी आज भी पैसे बचाते है…
गुजरे कल के किस्से सुनाते है, कैसे ये सब
जोड़ा गर्व से
बताते है पुराने दिनों की याद दिलाते
है,बचत की अहमियत
समझाते है
हमारी हर मांग आज भी,फ़ौरन पूरी करते
जाते है
पिताजी हमारे लिए ही पैसे बचाते है ...
Note: This poem is not written by me, but I love this poem alot.
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